Platelet-rich plasma - Wikipedia

दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल ने कोविड-19 के मरीजों का 'प्लाज्मा थेरेपी' से इलाज किया है। उनका दावा है कि इस इलाज से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार देखने को मिल रहा है। भारत में कोविड-19 के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को सीमित तौर पर ट्रायल की सशर्त इजाजत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और ड्रग्स कंट्रोलर-जनरल ऑफ इंडिया को देना है। फिलहाल ये इजाजत मैक्स अस्पताल को नहीं मिली है। लेकिन कम्पैशनेट ग्राउंड, यानी अनुकंपा के आधार पर मैक्स ने एक मरीज पर ये ट्रायल किया है और नतीजे सकारात्मक आए हैं। अस्पताल का दावा है कि कोविड19 का ये मरीज अब वेंटिलेटर पर नहीं है। 14 अप्रैल को उनका प्लाज्मा थेरेपी से इलाज शुरू किया गया था।

प्लाज्मा थेरेपी का पहला मरीज
दिल्ली के इस मरीज की उम्र 49 साल है। इन्हें 4 अप्रैल को अस्पताल में बुखार और सांस लेने की दिक्कत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इनकी तबीयत धीरे-धीरे और बिगड़ती चली गई, फिर इन्हें ऑक्सीजन पर रखने की नौबत आ गई। उन्हें निमोनिया हो गया और 8 अप्रैल आते-आते मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ी। इसके बाद परिवार ने डॉक्टरों से प्लाज्मा थेरेपी के जरिए इलाज करने की गुजारिश की।

परिवार ने प्लाज्मा के लिए डोनर भी खुद ही ढूंढा और 14 अप्रैल को नए तरीके के साथ इलाज शुरू किया गया। मरीज 18 अप्रैल से वेंटिलेटर सपोर्ट पर नहीं हैं और फिलहाल स्वस्थ बताए जा रहे हैं। हालांकि डॉक्टरों ने उन्हें अपनी निगरानी में अस्पताल में ही रखा है।

कौन होता है डोनर
प्लाज्मा थेरेपी से इलाज इस धारणा पर आधारित है कि वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इन एंटीबॉडीज की मदद से कोविड-19 रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है।

कोविड-19 में इलाज से ठीक हुए लोग ही इस थेरेपी में डोनर बन सकते हैं। इस थेरेपी के लिए जारी दिशा-निर्देश के मुताबिक, "किसी मरीज के शरीर से एंटीबॉडीज उसके ठीक होने के दो हफ्ते बाद ही लिए जा सकते हैं और उस रोगी का कोविड-19 का एक बार नहीं, बल्कि दो बार टेस्ट किया जाना चाहिए।"

ठीक हो चुके मरीज का एलिजा (एन्जाइम लिन्क्ड इम्युनोसॉर्बेन्ट ऐसे) टेस्ट किया जाता है जिससे उनके शरीर में एंटीबॉडीज की मात्रा का पता लगता है। लेकिन ठीक हो चुके मरीज के शरीर से रक्त लेने से पहले राष्ट्रीय मानकों के तहत उसकी शुद्धता की भी जांच की जाती है।

मैक्स अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ. संदीप के मुताबिक, "डोनर वही बन सकता है, जिसको कोई दूसरी बीमारी ना हो। कोविड से ठीक हुए दो हफ्ते गुजर चुके हो। और किसी और तरह की दवाई का सेवन नहीं कर रहे हों। उनके रक्त की जांच की जाती है। हेपाटाइटिस बी, सी और एचआईवी के लिए। फिर से कोरोना की जांच की जाती है। इन सबकी रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद डोनर की वेन्स चेक की जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर डोनर की वेन्स बहुत पतली हो तो ये प्लाज्मा थेरेपी सफल नहीं हो सकती है।"

डोनर की शुरुआती जांच में 7- 8 घंटे का वक्त लगता है। इसके बाद फिट डोनर के खून से प्लाज्मा निकाला जाता है। डॉ। संदीप कहते हैं, "डोनर से प्लाज्मा निकालने में 2 घंटे का वक्त लगता है। डोनर उसी दिन घर जा सकता है और इस पूरी प्रक्रिया का डोनर पर कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।" दिल्ली के मैक्स अस्पताल में जिस मरीज का इलाज इस प्रक्रिया से हुआ है, उन्होंने अपने लिए डोनर खुद ढूंढा था।

सरकार से मान्यता
कोविड-19 के मरीज का इलाज प्लाज्मा थेरेपी से करने के आईसीएमआर और ड्रग्स कंट्रोलर-जनरल ऑफ इंडिया दोनों की मंजूरी लेनी होती है। केरल सरकार ने सबसे पहले इसकी मंजूरी मांगी थी। देश के अलग-अलग राज्यों से 30 से अधिक अस्पतालों ने इसकी इजाजत मांगी है।

मंजूरी मिलने के बाद इस थेरेपी का क्लीनिकल ट्रायल शुरू होगा। जिसके लिए डोनर की जरूरत पड़ेगी। भारत सरकार के ताजा आँकड़ों के मुताबिक, देश भर में तकरीबन तीन हजार से ज्यादा लोग कोविड-19 के इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं। इनमें से जितने लोग 3 हफ्ते पहले ठीक हुए हैं वो डोनर बन सकते हैं। लेकिन इसके लिए वो सामने नहीं आ रहे। और यही है इस इलाज में सबसे बड़ी अड़चन।

दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंस (आईएलबीएस) ने भी इसके लिए मंजूरी मांगी थी, जो उन्हें मिल गई है। आईएलबीएस के डॉ. एसके सरीन के मुताबिक कोविड-19 के मरीज तैयार हैं, लेकिन उन मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल के लिए उन्हें डोनर ही नहीं मिल रहे हैं।